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भगवत कथा

माँ गंगा..??

✴️गंगा नदी को हम सब हिन्दू भाई माँ एवं देवी के रूप में पवित्र मानते हैं। हमारे द्वारा देवी रूप मे इस नदी की पूजा की जाती है, क्योंकि विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। तीर्थयात्री गंगा के पानी में अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं ताकि उनके प्रियजन सीधे स्वर्ग जा सकें। पर क्या हम नदियों के साथ अपनी जनमानस से जुड़ी आस्था का कुछ ज्यादा ही दुरुपयोग नहीं कर रहें। कितने मतलबी हो गए हैं हम। अंधी आस्था और व्यावसाय के नाम पर कितने कुकर्म करते हैं जिसका हिसाब लगाना भी मुश्किल हैं। खैर आगे बढ़ते हैं विषय की तरफ-

✴️भगवान विष्णु के चरण जल से ब्रह्मा जी के कमंडलु मे और वहा से निकल..महादेव की जटाओं से होते हुए स्वर्ग फिर पृथ्वी पर अवतरित हुई गंगा अविरल सिर्फ बहना जानती हैं ऊपर से नीचे तक। अन्त मे महासागर में समाहित हो अपना अस्तित्व खो देती हैं। इस मध्य उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि कौन उसकी आरती उतार रहा हैं कौन पूजा कर रहा हैं। कौन कुल्ला कर रहा हैं। कौन मैल डाल रहा हैं, कौन गंदा नाला डाल रहा, कौन अपनी प्यास बुझा रहा हैं। वो तो सिर्फ बहती हैं निश्छल, निष्कपट, पवित्र, शांत, निष्पक्ष, निर्दोष, निष्कलंक !! एक ही भाव “शिव” सबका कल्याण..इसी भाव से वो पतितपावन निर्मल माँ “गंगा”-मंदाकिनी, भागीरथी, शिवप्रिया, जाह्नवी..आदि अनेकों नमो से जानी जाती हैं। वो अपने कर्तव्य का पूरे ईमानदारी से निर्वहन कर रहीं पर, क्या हम भी अपना कर रहें हैं।?

✴️अलौकिक हैं हम सब पर उसकी कृपा। सिर्फ नाम लेने से तन मन पवित्र कर देती हैं। बहुत कुछ अपनी मौन से सीख देती हैं पर अंतः में गोबर भरे रहने से हम अधिकांश अश्लील वस्तुओं को ज्यादा महत्व देते हैं। सत हमें भाता ही नहीं। कौन सा ऐसा कचड़ा हैं जो हम उसमे नहीं डालते। उसके किनारे को काट हम आरामगाह बना उसे बेच रहे हैं। चंद काग़ज़ के रुपयों के लिए हमने अपने विनाश का खुद ही इंतजाम कर लिया हैं। हमारे कृत्य दर्शाता हैं कि ईश्वर और ईश्वर प्रदत वस्तुओं का हमारी नजर मे कोई मोल नहीं। मोल जो हम तीन-पांच करते हैं उसका हैं। दोस्तों आगे के लेख मे थोड़ा विस्तार मे जान पाएंगे। तबतक सत सत..नमन माँ हर हर गंगें को।
                               
✴️दोस्तों, माँ गंगा की उत्पत्ति के विषय में हमारे बीच अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल का जल गंगा नामक युवती के रूप में प्रकट हुआ था। एक अन्य (वैष्णव) कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। एक तीसरी मान्यता के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं। प्रत्येक मान्यता में यह अवश्य आता है कि उनका पालन-पोषण स्वर्ग में ब्रह्मा जी के संरक्षण में हुआ।

✴️कई वर्षों बाद, सगर नामक एक राजा को जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति हो गयी। एक दिन राजा सगर ने अपने साम्राज्य की समृद्धि के लिए एक अनुष्ठान करवाया। एक अश्व उस अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा था जिसे इंद्र ने ईर्ष्यावश चुरा लिया। सगर ने उस अश्व की खोज के लिए अपने सभी पुत्रों को पृथ्वी के चारों तरफ भेज दिया। उन्हें वह पाताललोक में ध्यानमग्न कपिल ऋषि के निकट मिला। यह मानते हुए कि उस अश्व को कपिल ऋषि द्वारा ही चुराया गया है, वे उनका अपमान करने लगे और उनकी तपस्या को भंग कर दिया।

✴️ऋषि ने कई वर्षों में पहली बार अपने नेत्रों को खोला और सगर के बेटों को देखा। इस दृष्टिपात से वे सभी के सभी साठ हजार जलकर भस्म हो गए। अंतिम संस्कार न किये जाने के कारण सगर के पुत्रों की आत्माएं प्रेत बनकर विचरने लगीं। जब दिलीप के पुत्र और सगर के एक वंशज भगीरथ ने इस दुर्भाग्य के बारे में सुना तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे गंगा को पृथ्वी पर लायेंगे ताकि उसके जल से सगर के पुत्रों के पाप धुल सकें और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके।

✴️भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की। ब्रह्मा जी मान गए और गंगा को आदेश दिया कि वह पृथ्वी पर जाये और वहां से पाताललोक जाये ताकि भगीरथ के वंशजों को मोक्ष प्राप्त हो सके। गंगा को यह काफी अपमानजनक लगा और उसने तय किया कि वह पूरे वेग के साथ स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेगी और उसे बहा ले जायेगी। तब भगीरथ ने घबराकर शिवजी से प्रार्थना की कि वे गंगा के वेग को कम कर दें।

✴️गंगा पूरे अहंकार के साथ शिव के सिर पर गिरने लगी। लेकिन शिव जी ने शांति पूर्वक उसे अपनी जटाओं में बांध लिया और केवल उसकी छोटी-छोटी धाराओं को ही बाहर निकलने दिया। शिव जी का स्पर्श प्राप्त करने से गंगा और अधिक पवित्र हो गयी। पाताललोक की तरफ़ जाती हुई गंगा ने पृथ्वी पर बहने के लिए एक अन्य धारा का निर्माण किया ताकि अभागे लोगों का उद्धार किया जा सके। गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है-स्वर्ग, पृथ्वी, तथा पाताल। इसलिए संस्कृत भाषा में उसे “त्रिपथगा” (तीनों लोकों में बहने वाली) कहा जाता है। भगीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आने के कारण उसे भगीरथी भी कहा जाता है; और दुस्साहसी प्रयासों तथा दुष्कर उपलब्धियों का वर्णन करने के लिए “भगीरथी प्रयत्न” शब्द का प्रयोग किया जाता है।

✴️गंगा को जाह्नवी नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी पर आने के बाद गंगा जब भगीरथ की तरफ बढ़ रही थी, उसके पानी के वेग ने काफी हलचल पैदा की और जाह्नू नामक ऋषि की साधना तथा उनके खेतों को नष्ट कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने गंगा के समस्त जल को पी लिया। तब देवताओं ने जाह्नू से प्रार्थना की कि वे गंगा को छोड़ दें ताकि वह अपने कार्य हेतु आगे बढ़ सके। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर जाह्नू ने गंगा के जल को अपने कान के रास्ते से बह जाने दिया। इस प्रकार गंगा का जाह्नवी” नाम (जाह्नू की पुत्री) पड़ा। स्कंद पुराण जैसे हिंदू ग्रंथों के अनुसार, देवी गंगा कार्तिकेय (मुरुगन) की सौतेली माता हैं; कार्तिकेय वास्तव में शिव और पार्वती का एक पुत्र है।

✴️पार्वती ने अपने शारीरिक दोषों से गणेश (शिव-पार्वती के पुत्र) की छवि का निर्माण किया, लेकिन गंगा के पवित्र जल में डूबने के बाद गणेश जीवित हो उठे। इसलिए कहा जाता है कि गणेश की दो माताएं हैं-पार्वती और गंगा और इसीलिए उन्हें द्विमातृ तथा गंगेय (गंगा का पुत्र) भी कहा जाता है।

✴️ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की तीन पत्नियां हैं जो हमेशा आपस में झगड़ती रहती हैं, इसलिए अंत में उन्होंने केवल लक्ष्मी को अपने साथ रखा और गंगा को शिव जी के पास तथा सरस्वती को ब्रह्मा जी के पास भेज दिया।

✴️ऐसी मान्यता है कि सरस्वती नदी के समान ही, कलयुग (वर्तमान का अंधकारमय काल) के अंत तक गंगा पूरी तरह से सूख जायेगी और उसके साथ ही यह युग भी समाप्त हो जायेगा। उसके बाद सतयुग (अर्थात सत्य का काल) का उदय होगा।
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एक कदम आध्यात्म की ओर..