
🟣#यदि_लिंग_भेद_हटा_दे तो स्त्री और पुरुष के मध्य बाह्य एवं आंतरिक क्रिया मे कोई अन्तर नहीं रहता! दोनों समान रूप से एक जैसे ही हो जाते हैं! दोनों ही प्राकृतिक रूप स्त्री हैं जिसमें हर क्षण बदलाव दृष्टिगोचर होता हैं! स्थिरता नहीं हैं! पंचभूत, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि के मिश्रण मात्र हैं! इसी तरह सम्पूर्ण दृश्य व अदृश्य जगत स्त्री रुप हैं जिसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता हैं! हम अपने को पुरुष कह सकते हैं किन्तु हैं नहीं! पुरुष सिर्फ एक हैं और सभी मे पूर्ण, व्यापक और समान हैं जिसमें कोई परिवर्तन एवं गतिशीलता नहीं दिखती! बिलकुल शान्त व स्थिर हैं! वही शिव हैं! नाम और रूप से रहित, अक्रिय, निरीह और व्यापक हैं! लिंग भेद से रहित अव्यक्त पुरुष वह सभी मे समान, एक और पूर्ण हैं! उसी की सत्ता से जीव प्रकृति के अलावा विराट जगत एवं के उसके सभी अंग गतिशीलता को प्राप्त होतें हैं! शिवजी का क्षयाचित्र उस परम पुरुष का मात्र एक काल्पनिक रूप हैं! जिसके अर्थ अत्यन्त गूढ़ हैं! शिव का वास्तविक रूप कल्पनातीत, अव्यक्त एवं असह्य हैं! जिनमें विरले ही वहां तक पहुंचें हुए योगीजन निरंतर रमण एवं अपने अन्दर-बाहर; खुली-बन्द आखों से सर्वत्र अनुभव व ध्यान करते हैं! ऐसे शिव समान योगी के दर्शन संसार मे अति दुर्लभ हैं! उन्हें पहचानना उतना ही कठिन भी हैं!°°°
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°°°•••✳️॥>!धन्यवाद!<॥✳️•••°°°