
🛑कभी कभी कुछ साधु युवा मित्रों का पोस्ट अचानक सामने आ जाता हैं। उनके विचार पढ़कर बड़ी हैरानी होती हैं। उनकी बात, विचार धार्मिक मानसिक कुंठा से युक्त भेदभाव वाला होता हैं। आज का लेख उन्हीं सज्जन मित्रों को समर्पित हैं। कोई भी धर्म, मत, मतांतर, योग हो..सगुण उपासक हो या निर्गुण, रास्ते भले ही अलग अलग हो पर अंत मे सबका गंतव्य और प्राप्ति एक ही हैं। कोई भी साधक योगी हो, गुरू हो जबतक उसकी साधना की पूर्णाहुति नहीं हो जाती परमात्मा का अनुभव स्वं से नही हो जाता और शिवत्व पर टिकता नही..तबतक तर्क, वितर्क, कुतर्क, भेद बुद्धि से बचें। किताबी ज्यादा ज्ञान भी कभी कभी मुस्किले जान हो जाता हैं। वेद, शास्त्रों के ज्ञाता रावण की तरह महापंडित हो सकते हैं, चंद तुच्छ सिद्धि-प्रसिद्धि भी प्राप्त कर सकते हैं पर प्रज्ञा कुंठित ही रहती हैं। आगे का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। महात्मा विदुर जैसों को ही भगवान दिखाई देते हैं चाहे वो किसी रूप मे क्यू ना हो। रावण जैसों को नही। मानव रूप मे कइयों बार सामना होने पर भी उसे एक साधारण वनवासी समझने की भूल कर बैठता है। अहंकार के कारण समझाने पर भी अपने छोटे भाई विभीषण या पत्नी की भी बात नहीं मानता। कारण आखों पर मैं-पना, महापंडित, महाबली, राजा और सिद्धियों से अलंकृत चश्मा लगाए था। प्रज्ञा कुंठित थी। खैर आगे बढ़ते हैं ?

*༺꧁‼️हर हर हरे हरे‼️꧂༻*
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🛑बुद्धि स्थूल है प्रज्ञा जागृत नहीं है अवचेतन मन मे पड़ा कचड़ा अभी साफ नहीं हुआ है, साधना पूरी नहीं हुई आधे- अधूरे हैं तो फिर वो योगी हो, सन्यासी हो, साधक हो, शास्त्रों को ज्ञाता महापंडित हो, ज्ञानी हो, बड़ा गुरू हो, गृहस्थ या फिर कोई और भेद बुद्धि बनी रहेगी। वो अपने ज्ञान, अपने गुरू, अपनी परम्परा, अपने संप्रदाय, अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ होने का ही गाना गायेंगा। इससे इतर दूसरे संप्रदाय और प्राचीन महापुरुषों को जिसे उसने कभी देखा भी नहीं मात्र सुनकर या पढ़कर उसे निम्न बता देगा। अंतर पूरे तीन-तेरह का। माना कि आपका धर्म और गुरू, परम्परा सबसे अच्छा उच्च कोटि का है पर अन्य का निम्न हैं, कैसे कह सकते हैं। अंतर 19, 20 का होना चाहिये ना कि 3 और तेरह का। आर्यसमाजी, मुस्लिम धर्म के लोग, मुहम्मद साहेब, संत कबीर, महात्मा बुद्ध आदि मूर्तिपूजा को नही मानते तो क्या सभी गलत है या जो सनातनी मूर्ति को मानते हैं वो गलत हैं। सबसे पहले धर्म कोई भी हो सम्मान करना सीखें।
🛑कोई भी देहधारी नहीं कह सकता कि वो 100 %शुद्ध हैं चाहे वो कितना भी बड़ा गुरू हो। कमियाँ ईश्वर जब देह धारण करते हैं तो उनमें भी मुर्ख लोग निकल देते हैं। उनकी नजर दूसरे के ही थाली पर रहती हैं। कभी भी वो अपने अंदर नहीं देखते। बहुत से साधक ध्यान लगाकर समाधिस्थ हो जाते हैं। उसके लिए वो कठिन साधना भी करते हैं। सिद्धि, प्रसिद्धि भी मिल जाती हैं। जब तक समाधि मे हैं तब तक ठीक। कब तक समाधि मे रहेंगे। उतारते ही फिर चंचल मन और इन्द्रियों के गुलाम बन जाते हैं। फिर वही वेदों और शास्त्रों के ज्ञान मे उलझ जाते हैं। प्रपंच पीछा नहीं छोड़ता। और दूसरों को भी परोसने लगते हैं। वेद के तथ्यों तक नहीं पहुंच पाते और भ्रमित रहते हैं। 10 लाख कोई उन्हें पकड़ाए तुरंत उनका ईमान डगमगा जाता हैं। भाई शिव तक पहले अपनी पहुंच बनाओ। शिव को आत्मसात करों। अपने जीवन मे उतारो। उनकी नजर से देखों फिर असल पता चल जायेगा। अधूरे ज्ञान को परिपक्व होने दे फिर बताये कौन क्या है।
🛑संत कबीर, महात्मा बुद्ध, तुलसीदास जी और भी बहुत से इस घोर कलयुग मे ऐसे साधु महापुरुष है जो किसी प्रसिद्धि, आश्रमों की घुड़दौड़ या भगवा-स्वेत रूप के मोहताज नहीं थे। उन्होंने कभी वेद पुराण नहीं पढ़ा और ना ही कभी पुराणों के दर्शन किए फिर भी उनकी वाणी उनके कर्म मे आप वेद, पुराण, गीता के दर्शन कर सकते हैं। उनके मुख् से निकला हर शब्द वेदों का सार ही होता हैं। वो उस परमात्मा से सतत जुड़े होते हैं जहां से अनेकानेक सृष्टि की नित उत्पति एवं विसर्जन होता हैं। जो आप पूर्ण समाधि मे अनुभव करते होगे, वो खुली आखों से हर एक पल दर्शन करते हैं। उन्हें पहचानने के लिए आपको अपनी तीब्र प्रज्ञा जागृत करनी होगी। उसके लिए आपको स्वतः ही बिना गुरू के अनुसंधान करना होगा। दूसरे के बताये रास्ते पर चलकर आप कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि उस रास्ते पर सिर्फ आपके अपने विचार, विवेक और निःस्वार्थ कर्म के अलावा कोई और मदद नहीं कर सकता।
⚫कोई जरूरी नही कि इसके लिए कठिन तप ही करना पड़े। ईश्वर सहज रूप हैं..निष्कपट, निश्छल, भोलेपन और सहजता से जल्दी मिल जाते हैं उन्हें खोजना नही पड़ता बल्कि वही दौड़े चले आते हैं। हमारे हर एक अहसास मे उनका समागम होता हैं। तार्किक बुद्धि, ज्ञानी, प्रसिद्धि की चाह, गुरू का ज्ञान बांटने वाले को कभी नहीं मिलते। वो लोग सिर्फ झूट एवं रटंत विद्या ही लोगों मे परोसते हैं। तंत्र-मंत्र के मकड़जाल मे खुद भी भ्रमित होते हैं और दूसरों को भी करते हैं।°°°
*༺✴️‼️#प्रपंच_से_परे_वो_शिव_हैं‼️✴️༻*
*༺⚜️꧁✴️‼️#शिवशरणम#‼️✴️꧂⚜️༻*
°°°•••✳️॥>!धन्यवाद!<॥✳️•••°°°
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