*༺꧁‼️हर हर हरे हरे‼️꧂༻*
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🛑दोस्तों, यदि लगन और प्रयास हो तो हम सब आफत में भी सफलता हासिल कर सकते हैं। गरीबी हमे आगे बढ़ने से नहीं रोक पाती। समाज मे बहुत से ऐसे उदाहरण हैं। अति गरीब और पिछड़े बच्चे थे माँ- बाप मजदूर! परन्तु बच्चे अपने लगन-पुरुषार्थ और अपने माता-पिता के आशीर्वाद से अपने क्षेत्र मे औरो से बहुत आगे निकल गए। ऐसे पुरुषार्थयों से मध्यवर्ग के उन माता- पिता को जरूर सबक लेना चाहिए, जिन्हें लगता है कि जब तक बच्चे किसी नामी-गिरामी स्कूल में नहीं पढ़ेंगे, तब तक वे कुछ कर ही नहीं सकते। इसके लिए उनकी गुंजाइश हो न हो, वे बड़़े-बड़े स्कूलों की तरफ भागते हैं। कर्ज भी लेना पड़े, तो बच्चों की ऊंची फीस भरते हैं। दिल्ली सहित अन्य शहरों में यह मारामारी बहुत दिखाई देती है। आज के दिन में, जब बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई हैं, वे बातचीत में पहली चिंता यही प्रकट करते हैं कि अब बच्चों की हजारों की फीस और ऊपरी खर्चे कहां से देंगे ?
🛑बच्चे को किसी सरकारी स्कूल में भेजना नहीं चाहते । समाज और जान- पहचान वालों में हंसी उड़ेगी, सो अलग। इसके अलावा माता-पिता सोचते हैं कि जिन कठिनाइयों का सामना उन्होंने अपने बचपन में किया था, वे अपने बच्चों को उनसे बचाएं। इसीलिए वे बच्चे की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं, जबकि अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को मुश्किलों का सामना करना सिखाना चाहिए, क्योंकि माता- पिता उनकी मदद करने के लिए हमेशा नहीं रहेंगे। इस दुनिया का सामना उन्हें अपने दम पर ही करना होगा। यह भी कहा जाता है कि जिन बच्चों ने कभी कठिनाइयां नहीं देखीं, यदि उनके सामने अचानक मुश्किलें आएं, तो वे उनका सामना नहीं कर पाते हैं। वे उनसे दूर भागते हैं। कई बार अवसाद का शिकार हो जाते हैं। और आत्महत्या जैसे घातक कदम भी उठा लेते हैं।
⚫गांधीजी अपनी पुस्तक सत्य के प्रयोग में अनेक परेशानियों का जिक्र करते हैं, पर कभी घुटने नहीं टेकते हैं। परेशानियों का सामना करने का हौसला उनमें हमेशा दिखाई देता है। किसी भी बड़ी हस्ती को बनाने में चुनौतियों का बड़ा हाथ होता है। इसी तरह से भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का उदाहरण है। बताया जाता है कि नदी पार करके उन्हें स्कूल जाना पड़ता था। वह तैरकर नदी पार करते थे। जाहिर है, मल्लाह को देने के लिए पैसे नहीं रहे होंगे। जब वह प्रधानमंत्री बने, तब भी उनके पास बहुत मामूली कपड़े थे। उन्हें फटे कपड़े पहनने से भी परहेज नहीं था। उन्होंने पद के कारण अपने रहन-सहन और सादगी से कोई समझौता नहीं किया। इस तरह की कथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। सादगी एक बड़ा जीवन मूल्य है। पंक्ति के अंतिम आदमी की चिंता ने भी इसे हमेशा बनाए रखा है। अपने बड़े नेताओं के संघर्ष और उनकी सफलता से भी तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है पर आजकल हम दिखावा, प्रदर्शन करने वाले सोहनलाल द्विवेदी की मशहूर पंक्तियां हैं, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..?°°°
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°°°•••✳️॥>!धन्यवाद!<॥✳️•••°°°
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